मन में नेगेटिव विचार क्यों आते हैं? ये समझने से पहले हम ये समझेगे कि निगेटिव विचार क्या है ?
दरअसल जब एक बच्चा जन्म लेता है तो उसे नहीं पता होता कि निगेटिव क्या है? और
पॉजिटिव क्या है ?
इस बात पर थोड़ा ध्यान दे ।
बच्चा जन्म के समय इन सारी बातों से अनजान होता है । फिर जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता जाता है वैसे-वैसे हमारा परिवार, हमारा समाज उसे यह सब सीखाता है ।
दरअसल बात यह है कि हम जिस धरती पर रहते है, उसे हम सभी 'माया' कहते है ।
माया का मतलब होता है जो होते हुए भी ना हो ।
अब आपके मन में सवाल आयेगा कि कैसे ?
इस पृथ्वी पर तो सब कुछ है ही, तो फिर होते हुए भी कैसे नहीं है ?
अच्छा तो आप यह बताइए
जो बच्चा आज जन्म लिया तो क्या 5 साल के बाद वैसा ही दिखेगा जैसे जन्म के समय दिखता था । ठीक वैसे ही हम कोई वस्तु खरीद के लाते है तो उस समय नया होता है, लेकिन कुछ समय बाद वह पुराना हो के खत्म हो जाता है । इससे आप क्या समझे कि इस पृथ्वी पर कोई भी वास्तविक नहीं है । सब कुछ प्रतिदिन बदल रहा है । परिवर्तित हो रहा है । मतलब जो आज है वह कल नहीं रहेगा । इसलिए इसे माया कहा जाता है ।
अब आप सोचिए जिस जगह हम रहते है वहाँ कुछ भी वास्तविक नहीं है तो फिर हमारे सोच पर उसका क्या प्रभाव पड़ेगा ।
हम वही है जो
हम देखते है,
सुनते है और
सोचते है ।
और इस धरती पर तो हर क्षण सब कुछ बदलते रहता है । जिसके कारण हमारे मन पर भी इसका प्रभाव पड़ता है, जिससे अधिक मात्रा में हमारे मन में निगेटिव विचार चलते है । क्योंकि जो हम देखेगे, जो सुनेगे वही न हम बनेगे ।
हमारे मन में निगेटिव विचार डालने वाले कोई और नहीं बल्कि हमारा अपना ही परिवार और हमारा अपना ही समाज है ।